मेरा परिचय

मैं एक आम हिंदुस्तानी हूँ जो पिछले पाँच सालो से न्यू यॉर्क, अमेरिका में रह रहा है | मशहूर इश्कबाज़ी में, मैंने कुछ आठ साल पहले लिखना शुरू किया | कुछ अध्याय लिखने के बाद मैं दो पब्लिशर्स के पास गया, सिनोप्सिस और सैंपल के रूप में चार अध्याय के साथ | पहले पब्लिशर ने एक हफ्ते का समय माँगा और ये कहकर पब्लिश करने में संकोच बताया की कहानी हिंदी में नहीं है, इसमें उर्दू के शब्दो का भी इस्तेमाल है और अंग्रेजी के भी शब्दो का | मैंने कहा की मैं हिंदी साहित्य नहीं लिख रहा हूँ | कहानी लिखनी है और जिस तरह मैं खुद हिंदी का इस्तेमाल करता हूँ, अपने आस पास लोगो को इस्तेमाल करते हुए देखता हूँ, उसी भाषा में और उसी शैली में कहानी लिख रहा हूँ | सभ कुछ सुनने के बाद भी संपादक जी ने कहा कि अगर पब्लिश होगा तो मुझे शुद्ध हिंदी का ही प्रयोग करना होगा |

थोड़ी मायूसी हुई पर मैं फिर ग्रेटर कैलाश, दिल्ली में एक और नामी पब्लिशर के ऑफिस में गया | वह उनको वो पैकेट दिया जिसमे कहानी का सिनोप्सिस था और सैंपल अध्याय थें | कुछ दो हफ्ते बाद उन्होंने ईमेल किया की भई हम तैयार है | दिल को थोड़ा सुकून पहुँचा की चलो कुछ तो बात है मेरे उपन्यास में, कुछ तो लिखा है मैंने | अब तो बस कहानी को पूरा करना था | लेकिन अजी कहा !

दिन, हफ्ते, महीने, कई साल गुज़र गए | इस बीच एक प्यारी सी बेटी हुई, मैं इंडिया से अमेरिका आ पहुँचा, और यहाँ की भीड़ में, काम में, या फिर हरिवंश राय बच्चन के शब्दो को उधार में लू तो, जीवन की आपाधापी में ऐसा मसरूफ हुआ कि कई साल बीत गए | वो कलाम, वो कागज़ बस इंतज़ार ही करते रह गए | पर अब समय आ गया है |

और जब समय आया तो देखा की भई ज़माना भी बदल गया है | मुझे तो अपनी कहानी लोगो तक पहुँचानी है बस | और सोशल मीडिया और गिग इकॉनमी के ज़माने में मुझे किसी पब्लिशर की ज़रुरत ही नहीं है | फेसबुक और इंस्टाग्राम के माध्यम से खुद ही प्रचार करूंगा और मशूहर इश्कबाज़ी को अपने वेबसाइट के जरिये लोगो तक पहुँचाऊंगा |

आईये देखते है आपसे जुड़ पाता हूँ की नहीं | ये उपन्यास आपको पसंद आता है की नहीं | इसे पूरा करने के बाद आप मेरे दुसरे उपन्यास का इंतज़ार करते है या नहीं |