अंग्रेजी में एक शब्द है: वोलुप्शस, अगर हिंदी में इसका अनुवाद किया जाए तो इसका अर्थ होता है “भरा पूरा शरीर” या “गदराया हुआ बदन” जिसे देखते ही मनुष्य की वासना उसकी चरम सीमा पर पहुँच जाती है | बहुत सारे मर्द, ऐसी युवतियों के दीवाने होते है | कैसी दिखती होगी वो स्त्री जो अपने सुंदरता से, अपने जिस्म से, अपने स्वभाव से और अपनी ऊर्जा से लोगो को ऐसा दीवाना कर दे कि वो खुद को ही भूल जाए | वो भूल जाए अपने अस्तित्व को, अपने सगे सम्बन्धियो को, अपनी मुहब्बत को, अपनी जिम्मेदारियों को | कैसी हो सकती है वैसी मायावी सुंदरता ? ऐसी स्त्री हो भी सकती है क्या ? या फिर ऐसा कोई पुरुष भी हो सकता है क्या जो वैसा ही मायावी आकर्षण स्त्रियों के लिए पैदा कर सकता हो ?
क्या है कोई मेनका या फिर कामदेव जो समलैंगिक या फिर विप्लैंकिग (हेट्रोसेक्सुअल) लोगो के काम व्यवहार को बदल सके ?
प्रबल विज्ञान इन्हीं चीज़ों के अध्ययन में लगे हुए थे | उनकी उलझन थी कि आखिर समलैंगिक पुरुष टेलीविज़न अभिनेत्री निशा से इतना क्यों आकर्षित हो रहे थे की उनकी सेक्सुअल प्राथमिकता में बदलाव आ रहा था |
प्रबल विज्ञान के कई समलैंगिक पेशेंट्स थे जो उनके पास मानसिक थेरेपी के लिए आते थे | इनमें कई युवक और युवतियां थी जो अपने “गेय” और “लेस्बियन” साथी के साथ दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर रहे थे | मानसिक रूप से काफी कठिनाइयों के साथ जूझना पड़ता था उन्हें और वो प्रबल विज्ञान के पास अपने दिमाग की पीड़ा और दिल की पीड़ा से निपटने के लिए थेरेपी के लिए आते थे | कई ऐसे भी पेशेंट्स थे जिन्हें हम “क्वीयर” कह सकते है | ये लोग अभी नहीं समझ पाए थे कि उनकी सेक्सुअल प्राथमिकता क्या है | प्रबल विज्ञान “डॉक्टरेट ऑफ़ मेडिसिन” थे और उनका रिसर्च एवं थीसिस भारत के सेक्सुअल ओरिएंटेशन या सेक्सुअल उन्मुखीकरण पर था | विश्वविख्यात सेक्सओलॉजिस्ट डॉक्टर अल्फ्रेड किन्से को ये अपना गुरु मानते थे | हालांकि प्रबल विज्ञान की कभी उनसे मुलाकात नहीं हुई थी | अल्फ्रेड किन्से का देहांत तो उनके जन्म के कई दशक पहले ही हो चुका था, पर उनका विश्वव्यापी अध्ययन एक बाइबिल समान था जिसकी गहरी पढ़ाई प्रबल विज्ञान ने की थी | ख़ास कर समलैंगिक लोगो के कामभोगी आचरण को लेकर उन्होंने बहुत रिसर्च किया था जो भारत में बहुत ही काम लोगो ने किया है | यही वजह थी की उनके कई पेशेंट्स एलजीबीटीक्यू थे – समलैंगिक और उनसे ही जुड़ी श्रेणी के थे | यह समलैंगिक पुरुषों के लिए स्वाभाविक बात नहीं थी | आजकल बहुत से समलैंगिक स्त्री पुरुष, प्रबल के पास अपनी मांसकीक चिकित्सा के लिए आते थे | “निशा का सवेरा” देखते देखते वे अपने में कुछ बदलाव महसूस कर रहे थे और मानसिक रूप से थोड़ी परेशानी में थे |
प्रबल विज्ञान के पास दो सवाल थे जिनका वो उत्तर ढूंढने की कोशिश कर रहे थे | आखिर निशा में ऐसा क्या है जो समलैंगिक लोगो में भी बदलाव आ रहा है ? अपने अध्ययन को दो खंड में बाँट रखा था उन्होंने, निशा की खूबसूरती क्या एक अति-उत्तम स्त्री की प्रतिमूर्ति थी ? दूसरा, क्या समलैंगिक लोगो में भी बदलाव आ सकता हैं ? इन सवालों का उत्तर ढूंढना प्रबल विज्ञान के लिए एक मिशन बन चुका था और आजकल वो अपना बहुत सारा समय इसी संशोधन में लगा रहे थे |
प्रबल विज्ञान नें अपनी डायरी उठाई और एक नए पन्ने पर उस दिन का दिनांक दर्ज किया | टाइटल के तौर पे लिखा “स्त्री के विभिन्न अंगो पर पुरुषों का प्रभाव” | वो अपने दाँत से कलम के पिछले हिस्से को धीरे धीरे चबा भी रहे थे | ये बचपन से उनकी आदत रही थी और जाने कितने ही कलम उनकी आदत का शिकार हो चुके थे | प्रबल विज्ञान ने अपना संशोधन जारी रखते हुए लिखना प्रारम्भ किया |
डायरी एंट्री – दिनांक – १७ – ० ५ – २०१९
“ स्त्री के विभिन्न अंगो का पुरुषों पर प्रभाव ”
आँखे: स्त्री की आँखे पुरुषों के लिए एक अत्यंत आकर्षण का केंद्र होती है | ये आँखे उनसे कुछ बोलती है, और कुछ नहीं लेकिन बहुत कुछ बोलतीं है | कुछ स्त्रियों की आँखें शालीन होती है और मन को बहुत शांति पहुँचाती है | ये आँखे उनके लिए होती है जो अपने जीवन में ठहराँव चाहते है, संतुलन चाहते है |
इसके विपरीत होती है बिलख्खी आँखे, कहरी आँखें जिनको देख कर ऐसा लगता है की ये कभी भी आप पर बरस सकती है, आपकी शान्ति में भूकंप ला सकती है | ऐसी आँखे भी कई लोगो को पसंद आती है पर वो आपके अंदर एक “एग्रेसिव” भावना को जगाती है | हालांकि इसे एक स्वाभाविक नियम के तौर पे नहीं कहा जा सकता है | और भी कई प्रकार की आँखें होती है पर आँख इस संशोधन का विषय नहीं है परंतु एक पहलू है |
सबसे प्रभावशाली आँखें होती हैं जिनमें से मदहोश कर देने वाली रस टपकता है | ये आँखें आपसे बहुत कुछ कहना चाहती हैं, प्रेम रस पान कराना चाहती हैं, पर यह बिल्कुल भी प्रत्यक्ष रूप से अपना खुलासा नहीं करती है | यह सारी चीजें इन आंखों के पीछे एक पहेली की तरह छुपी रहती हैं | कभी सामने आती हैं और कभी इनके द्वार को बंद कर दिया जाता है | ये आँखें आपके साथ आँख मिचौली का खेल खेलती है | आपके अंदर छिपे हुए अरमानों को हवा देती है | और ऐसा वो खुल कर नहीं करती है | आपको हमेशा ऐसा लगेगा कि कही आप गलत तो नहीं सोच रहे है | जब आप सोचेंगे की आप गलत है तो ये आँखे एक चलचित्र की तरह आपके अरमान को जगाएँगी और फिर झट से अपने व्यवहार को बदल कर स्पक्ष रूप से दिखायेंगी की आपकी सोच कितनी मैली है, आपको अंदर से जलील कर देंगी, आप उन आँखों के सामने बिना कपड़े उतारे निर्वस्त्र हो चुके होंगे | इन आँखों में एक नटखट वासना बसती है जो आपकी परीक्षा लेती है | निशा की आँखे ऐसी थी जो पुरुषों के सोये हुए वासना को बाहर लाती है | हर पुरुष के अंदर एक कामदेवी कुम्भकर्ण होता है और ये उन्हें एक गहरी नींद से जगा देने का सामर्थ्य रखती है |
होठ: स्त्री के होठ एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है | पुरुषों की प्यास का निर्वाह इन्ही होठो द्वारा पिरोये गए रसपान से होता है | अगर देखा जाए तो आँखे और होठ दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है | इसी कारण इनका विशेष ध्यान रखा जाता है | इनकी खूबसूरती उभारने के लिए इन्हें कई प्रकार से सजाया भी जाता है | विशेषकर काजल का आँखों पर और होठो के लिए तो कई तरीके के रंग बिरंगे लिपस्टिक का इस्तेमाल भी किया जाता है |
स्त्री के होठ आकर्षण का बहुत बड़ा केंद्र होते है | पतले होठ स्त्री की खूबसूरती को एक बारीकी देते है | मतलब ये समझ लीजिये जैसे कि कुदरत ने सारे यंत्रो का इस्तेमाल कर तराशा है उन्हें | अक्सर उत्तर भारत की स्त्रियों के ऐसे पतले होठ होते है | कुदरत ने इन्हें बारीकी से तराशा है और ऐसे होठ अक्सर मैंने अपने कार्यकाल के अनुभव में पाया है, एक नियमित जीवन व्यतीत करने वाले लोगो को अपनी तरफ आकर्षित करते है | ऐसे लोग जो अपने जीवन में हर चीज में परफेक्शन चाहते है | इस किस्म के लोग आम तौर पर इन बातों में ज्यादा फिक्र करते है कि लोग उनके बारे में क्या सोचते है और इसी कारणवश अपने पास अच्छी से अच्छी चीजे चाहते है |
इसके बाद होते है मोटे होठ | ऐसे होठ शायद बहुत की काम लोगो को अपनी तरफ आकर्षित करते होंगे परंतु दक्षिण भारत में इनका काफी प्रचलन है | ये उन लोगो को भाते है, जिन्हें इस बात से मतलब ही नहीं होता की होठ और आँखे कैसी है | उनके आकर्षण का केंद्र बिंदु कही और ही होता है | ऐसा आकर्षण होता है की चाहे जो कुछ हो जाए, प्रलय भी आ जाए तो उनकी नजर वहां से नहीं हटती है | मौका मिलने पर सबसे पहले धावा भी वही बोला जाता है |
वैसे होठो को कई प्रकार में बाँटा जा सकता है पर विशेष प्रकारों में तीसरा और आख़िरी होता है, जिसे अंग्रेजी में कहा जाता है “फुल लिप्स” | ऐसे होंठो में होठ का जो ऊपरी हिस्सा होता है वो थोड़ा उठा हुआ रहता है और थोड़ा मोटा भी होता है | नीचे वाला हिस्सा थोड़ा काम मोटा होता है और दोनों एक साथ तो ऐसे लगते है की सामान्य मुद्रा में ही आपको चूमने के लिए तैयार बैठे है | ऐसे होठ सभी को पसंद आते है पर सबको नसीब नहीं होते है | ये आशिक़ मिजाज़ो के मजाज़ी के लिए बनाये गए है और उनकी के दरवाज़े पर दस्तक देते है | इन्हें पता होता है की उनके कदरदान कई सारे है पर उस पैमाने से किसकी प्यास को तर करना है, ये बात ये भली भाँति जानते है | ऐसे होंठो के लिए मर्द अपने इमान को तंदूर पर, शर्म को दराज़ में और अपना सब कुछ दाँव पर भी लगाने को तैयार हो जाते है |
अब इन्ही होंठो में दाहिनी ओर – होंठ और नाँक के बीच में अगर आप एक छोटा सा, थोड़ा उभरा हुआ सा तिल जड़ दे तो बस समझ लीजिये की अंगूठी में नगीना लग गया | आप अपना ईमान, शर्म, वजूद, घर-बार, सबका कुर्मा बना कर इन होंठो को खिलाने को तैयार हो जाएँगे | आप बस इनके गुलाम बन कर रह जाएँगे | और अगर कही नीचे वाले होंठ को ऊपर वाले होंठ ने धर दबोचा और धीरे-धीरे छोड़ा तो आप इतना छटपटा जाएँगे कि बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाएगा |
निशा के होंठ ऐसे ही है और अपने सीरियल में भी उन्हें मींचना, उसकी एक स्वाभाविक आदत है | सारे मर्द इंतज़ार करते है कि वो दुबारा कब ऐसा करेगी | इतनी कशिश है उसकी अदा में, कि कोई भी कैसा भी मर्द ज़्यादा समय तक अपने आप को रोक नहीं पाता | समलैंगिक लोगो की सोयी हुई स्त्रियों के प्रति काम वासना शायद इन होंठो से भी उत्तेजित हो उठती होंगी | हालाँकि ये यकीनन नहीं कहा जा सकता पर एक मनोचिकित्सक होने के नाते और इतना अध्ययन करने के बाद, इस विषय के बारे में इतना सोचने के बाद “शायद” शब्द का इस्तेमाल करना यकीनन गलत नहीं होगा | शायद ऐसे रस भरे हरकत करने वाले होंठ भी जिम्मेदार है इस बदलाव का |
नाक: बस इतना समझ लीजिये की नाक खूबसूरती की शान है | औरत और होंठ की सुंदरता पर चार चाँद लगाने में इसका बहुत बड़ा हाथ है |
होंठ और आँख जो अहम् भूमिका निभाते है, ये नाक उनकी सुंदरता का अभिमान है | जो जितना ज्यादा खड़ी, उनमें उतना ही गुमान | जो जितनी छोटी वो उतनी ही मासूम | अब ये कहना की किसे किस तरह की नाक पसंद है, ये कहना जरा मुश्किल है | अधिकाँश लोगो को पतली और खड़ी नाक ज़्यादा भाँति है | इस तरह की नाक में एक घमंड होता है और जो उन्हें पा लेता है उन्हें ऐसा लगता है की उन्होंने किसी किले पर फतह हासिल कर लिया है |
छोटी नाक उन लोगो को पसंद आती है जिन्हें अपने जीवन में एक शांतिपूर्वक प्यार चाहिए | ऐसी प्यार करने वाली जिसमे भोलापन हो | सुन्दर आँखे और रसीले होंठ के बीच में अगर एक छोटी नाक हो तो ये एक भोलेपन का एहसास देती है, ये बताती है की सामने वाले को एहसास नहीं है अपनी खूबसूरती के बारे में, और अगर है तो इस बात का गुमान अवश्य ही नहीं है |
इन दोनों के अलावा अगर नाक की परिभाषा लिखी जाए तो एक तीसरे प्रकार का भी नाक सामने उभर कर आता है | ये नाक खड़ी रहती है, भोलेपन के बोझ तले दबी नहीं रहती है | पर ये नाक एकदम पतली तराशी हुई नहीं लगती है | इनमे थोड़ा रूखापन होता है | ये थोड़ी मोटी होती है और आपसे कहती है कि मुझे पाना बस यू समझ लो कि हिमालय पर्वत की चढ़ाई चढ़ने जैसा है | अगर मुझे पाना है तो बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और पा लिया तो ये समझ लो की फल भरपूर मिलेगा, कही कोई कमी नहीं रहेगी |
नाभी: हिंदुस्तान में कई लोगो के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र है एक स्त्री की नाभी | हिंदुस्तान का पारंपरिक वस्त्र इसे बखूबी दिखाने की क्षमता भी रखता है | अगर आप साड़ी की ओर ध्यान दे तो आपको ये बात समझ में आएगी की कि यह कितना उत्तेजित करने वाली वस्त्र है | इसे बहुत गरिमामयी तरीके से पहना जाता है और साथ ही में अंगप्रदर्शन के मुकाबले में ये कही पीछे भी नहीं रहता है | यह एक ऐसा वस्त्र है जिसमे आपको उतना दिखाया जाता है ताकि आप आगे की कल्पना स्वच्छन्द रूप से कर सके | उभार, उतार-चढ़ाव, सभी की कल्पना इस वस्त्र से हो जाती है | ये उतना ही दिखाती है, जितना की एक मनुष्य को आवश्यकता हो | एक अच्छी-अधूरी कहानी आपके अंदर की तड़प को, कि आगे क्या रहस्य छुपा है – कोई इस साड़ी से सीखे | अगर कहानी अच्छी नहीं है तो पूरी किताब पढ़ने का किसे शौक | बस यू समझ लीजिये की यह एक विज्ञापन जैसी है | किसे क्या पसंद इसका लेख जोखा आगे किया जाए |
नाभी के भी कई प्रकार होते है और नाभी को कमर के साथ मिला कर देखना, पुरुषो की ढीली मर्यादा समझने के लिए बहुत ही आवश्यक है | नाभियों के कुल छ प्रकार होते है | पहले दो की परिभाषा उनकी गहराई से सम्बन्ध रखती है | एक नाभी वो होती है जिसका अंत आपको ऊपर से ही दिखाई देता है | और एक होती है अंतहीन, वो एक गहरे कुँए के सामान होती है जिसका कोई अंत नहीं होता | आपकी कल्पना उतनी ही बढ़ती जाती है जितना आप उसके अंदर समाते चले जाते है | इन्ही दोनों से जुड़े है बाकी के दो प्रकार |
छोटी नाभी एक पतले एवं सपाट कमर के साथ मेल खाता है और पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करता है | ये ऐसे लोगो के लिए होता है जो अपने जीवन में बहुत चुस्त रहते है और अपने शरीर पर अच्छा ख़ासा ध्यान देते है | इस प्रकार के तालमेल वाली स्त्रियाँ ज्यादातर से काफी फुर्तीली होती है और हर प्रकार के करतब दिखाने में भी सक्षम रहती है | हालाँकि साड़ी में उनकी खूबसूरती उतनी उभर कर नहीं आती जितना की विदेशी कपड़ो में आती है | इनकी और इनके चाहने वालो की अपनी एक अलग दुनिया होती है | छोटी नाभी थोड़े चर्बीदार कमर के साथ हो तो इनका आकर्षण बहुत ही काम हो जाता है | उसी तरह गहरी नाभी अगर सपाट कमर के साथ हो तो इनपे साड़ी बहुत ही अच्छी लगती है | ये भी लोगो को दीवाना बनाने का हौसला और सामर्थ्य रखती है | पर असली कहानी अब शुरू होती है |
गहरी नाभी अगर थोड़े भरे, थोड़ी चर्बी, थोड़े फैले हुए कमर के साथ हो तो ये कहर ढा सकती है, हिंदुस्तान के गाँव-गाँव, कोने-कोने में | ये साड़ी पर सबसे ज्यादा सजती है और इसकी अनोखी सुंदरता इसी वस्त्र से ही उजागर होती है | सुंदरता पर चार चाँद तब लग जाता है जब इनपे चढ़ाई जाती है एक जंजीर जिसे हम कमार्धनि के नाम से जानते है | निशा एक पतले से सोने की कामर्धनी हमेशा साड़ी के साथ पहनती थी | यह कमर्धनि उसकी कमर को एक रेशमी धागे की तरह समेट कर रखती थी और मानो ऐसा लगता था की वो नाभी इस केंद्र से आज़ाद होना चाहती है | इतना कुछ देखने के बाद अच्छे महात्माओं एवं विश्वामित्रों के पसीने निकल जाते थे | लगता है ये नाभी भी और उसे जिस रूप-सज्जा में रखा जाता था, भारतवर्ष के समलैंगिक पुरुषों के लिए अब बहुत भारी पड़ता जा रहा था |
प्रबल विज्ञान को अब लगने लगा था की उसका ये अध्ययन विज्ञान जगत को अब एक नया आयाम देने वाला था | अपने जर्नल में इसे दर्ज करने के बाद उन्हें लग रहा था की उनकी समस्या का हल अब उन्हें जल्द ही मिलने वाला है | उनकी कलम और दिमाग दोनों ही अब तेज रफ़्तार पकड़ रहे थे | अपने पास पड़े एक कोरे कागज़ को उन्होंने उठाया और उस पर लिखा, आँखे, होठ, नाक, नाभी और इन शब्दो को चारो तरफ उसने एक गोल रेखा खींची | फिर अपने जर्नल में प्रबल विज्ञान ने लिखना शुरू किया |
आँखे, होठ, नाक और नाभी, इनका विशेष रूप से अध्ययन करना अभी पूरा नहीं हुआ है | ये तो अभी एक ह्यपोथेसिस है जिसको एक सर्वे के माध्यम से प्रमाणित भी की करना जरूरी है | इनका इस रूप में और किस प्रकार से हमारे ह्रदय में और हमारे अंदर छिपी वासना शक्ति से प्रभाव पड़ता है, इसका उल्लेख तो किया जा चुका है, पर वास्तव में यही वजह है क्या ये, इसका भी प्रमाण ढूँढना बाँकि है |
एक और महत्त्वपूर्ण बात ये है की चारो के साथ एक स्त्री का बदन किस प्रकार का होना चाहिए कि लोग अपना अस्तित्व भूल जाए और उसे पाने के लिए कुछ भी करने पर उतारू हो जाए | यानी की कैसी होती होगी वो मेनका?
निशा की आँखे, होठ, नाक एवं नाभी का वर्णन तो पूर्ण रूप से किया जा चुका है, अब देखने वाली बात है की वो कौन सी कड़िया है जो इन्हें पूरा कर सकती है, निशा को वो बनाने में जो आज वो है और जिसका पूरे समलैंगिक समाज पर एक बहुत ही गहरा असर पड़ रहा है | शायद ये टूटी हुई कड़ी अब प्रत्यक्ष रूप से सामने आ सकती है अगर अध्ययन को सही तरीके से आगे बढ़ाया जाए तो |
निशा सुन्दर भी है और अशलील भी, एक संकोच करती हुई सुन्दर अशलीलता जो निशा के अंग-अंग में है, उसके हाँव-भाँव में है | इनको पूरा बनाती है निशा की नितम्बे और उसकी जाँघ | ये है एक जीता जागता उदाहरण एक “ अल्टीमेट वोलुप्शस ” स्त्री का | इस परिभाषा में स्त्री का पहला उदाहरण जो कितने ही कवियों और दीवानों की कल्पना से बाहर निकल कर आयी है | जिससे पता लगता है की बनाने वाले की कला भी कितनी खूबसूरत है | ये बदन तराशा नहीं गया है, इस बदन को अगर तोड़ कर अलग किया जाए तो इसकी सुंदरता नहीं मालूम होगी | इसकी सुंदरता का पता तब चलेगा जब आप इसे एक साथ एक जीते जागते स्वरुप में देखे | अलग-अलग होने पर ये निश्चय ही परफेक्ट नहीं है पर एक साथ देखा जाए तो आप जानेंगे कितनी अजीबोगरीब कला है उस बनाने वाले की – “ इम्परफेक्ट व्हेन डिवाइडेड एंड परफेक्ट व्हेन यूनाइटेड ” |
प्निशा का सब कुछ, वेश-भूषा, हाँव-भाँव, सुंदरता एक अधूरी कहानी थी जिसे लोग पूरी तरह पढ़ना चाहते थे | यह एक संवेदनशील सस्पेंस कहानी के जैसी थी जिसमे लोग पागल हो चुके थे ये जानने के लिए की आगे क्या है | और आगे का हाल जानने के लिए समलैंगिक लोग क्या व्याकुल हो चुके थें ? शायद वो अपने इस बदलाव से परेशान हो गए थे इसी लिए प्रबल विज्ञान की क्लिनिक के दौरे पर चले आते थे | वो जानते थे की प्यार एक अँधा कुआ है, चोट केवल दिल को लगती है पर घांव समूचे शरीर को लग जाता है, घांव शरीर को लगती है और सारा जीवन लहू लुहान हो जाता है | असर उनके जीवन पर तो पड़ ही रहा था | ये बदलाव एक सामान रूप से समलैंगिक लोगो में नहीं आ रहा था और इस वजह से जो समलैंगिक पुरुष अपने समलैंगिक साथी के साथ किसी रिलेशनशिप में थे, उनके जीवन में एक कलेश हो उठा था | अगर निशा को पा भी लिया जाए तो यह ज़रूरी नहीं है कि उसके चाहने वालो को उसी सुख की प्राप्ति होगी जिसकी उन्होंने कल्पना की थी | इस कहानी का अंत उसे ही पता चलेगा जो निशा को पाने में कामयाब हो सकेगा | कौन होगा वो खुशकिस्मत और वो बेचारा जिसे निशा को पाने के बाद भी शायद निराश हाथ लगेगी जब उसे पता चलेगा कि कल्पना और वास्तविकता चाँद और सूरज की तरह है, हमेशा आँख मिचौली ही खेलते है | कभी गोधुली में आमने सामने आ जाते है पर फिर चाँद के शीतल छाँव में सूर्य अपना अस्तित्व खो बैठता है | इनका एक साथ घुल मिल कर रहना संभव नहीं है |
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