३ – श्याम सुंदर

धीमी खुशबू और अँधेरी रौशनी में, कलम और स्याही का सहारा और सुनहरे रॉयल स्टैग व्हिस्की की दवात पीते हुए वो कुछ लिख रहा था | हर शाम को इसी कारखाने में वो अपनी कारीगरी करता था | आज माहौल कुछ अलग था तो वो कुछ और ही सोच रहा था, कुछ और ही कह रहा था और कुछ और ही लिख रहा था | श्याम सुन्दर ने अपनी बाई कलाई से लिपटी घड़ी की तरफ देखा, रात के साढ़े दस हुए थे और अप्सरा बार की शमा और लौ पकड़ रही थी | दिल्ली की चुनिंदा अप्सराएँ उसके आस पास मंडराने लगी थी | श्याम सुन्दर पेग पे पेग पिए जा रहा था और खुद से ही वार्तालाप कर कुछ और लिखे जा रहा था | कलम की रफ़्तार तेज पकड़े जा रही थी, दिल में छुपी दास्तान कागज़ पर प्रत्यक्ष किये जा रही थी | 

जागो रात जागो

शमा जल पड़ी है 

नींद की चादर हटाओ

जागो रात जागो

आज फिर लेकर आया है 

उम्मीद की वो किरण

कि है कोई मेरे लिए भी 

धरती में या गगन

अप्सराएं पहुँच चुकी है 

शाम ए महफ़िल दहक रही है अंदर 

जागो रात जागो

आस लगाए है श्याम सुन्दर 

अपनी इस रचना पर श्याम सुन्दर मुस्कुराया | न जाने कितने दिनों से वो अपनी रातें ऐसे ही व्यतीत करता आ रहा था | अप्सरा बार के अब तक के सफर में कितने ही लोग आये और कितने ही लोग गए, पर उसे इस बात की ख़ुशी थी की उसमे अब भी आकांशा की वो किरण जल रही थी | उसने हार नहीं मानी थी | क्या करे इतनी मुहब्बत थी उसके अंदर बाँटने के लिए की उसे यकीन था की कोई न कोई उसे ज़रूर मिलेगी | 

“एक बड़ा वाला और बनाना भाई साहब |” श्याम सुन्दर ने एक ही बार में गिलास में पड़ा स्वर्णपाण झट से गटक लिया और गिलास बार-टेंडर के पास बढ़ा दिया | अपनी दायीं हथेली में कलम को पकड़े वो उसे अपनी उंगलियों के बीच घुमा रहा था, बिलकुल जैसे एक गृह नाचते हुए अंतरिक्ष की परिक्रमा कर रहा होता है | ठीक उसी तरह जैसे उसके अंतरिक्ष रूपी दिमाग में हृदय की भावनाएं शब्द बन कर घूम रहे थे |

पिछले ही हफ्ते परेश ने श्याम सुन्दर को निशा के बारे में बताया था | उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की परेश की इन्टरनेट के माध्यम से ऐसी लॉटरी निकल पड़ी है | उसने भी कई बार सोचा था की अप्सरा बार के बजाय घर पर ही चैटिंग शुरू करे पर उसे लोगो से आमने सामने मिलने में ज़्यादा अच्छा लगता था | और उसने अपनी आँखों से कई बार देखा था की इसी अप्सरा बार में कई लोगो की तलाश कामयाबी के अंतिम अंजाम तक पहुँची थी | परेश और उसके बीच में कई बार इस बात को लेकर बहस भी छिड़ चुकी थी और श्याम सुन्दर का यही मानना था की चैटिंग बेकार लोगो के लिए है जहाँ अवैध किस्म की चीजे ज्यादा चलती है | चैटिंग के माध्यम से मुहब्बत तो मिल ही नहीं सकती – अगर हंवस मिटानी है तो शायद हाँ, पर उसके लिए भी कई और बेहतर तरीके है, तो फिर चैटिंग ही क्यों ? श्याम सुन्दर का मानना था की जो लोग अपने दामपंत्य जीवन से खुश नहीं है और जिनमे इतना कलेजा नहीं है की वो बाहर जाकर कुछ कर सके – ये इन्टरनेट और चैटिंग उन्ही लोगो के लिए है | पर परेश की इस कामयाब कहानी के बाद वो सोचने लगा की क्या उसे अपना तरीका बदल लेना चाहिए?

श्याम ने सोचा की अब इस विचार पर बातचीत और बहस अगले हफ्ते परेश और प्रबल के साथ ही होगी जब वो जॉली रॉजर्स पब में हर हफ्ते की तरह, शनिवार को अपनी साप्ताहिकी के लिए मिलेंगे | परेश और श्याम बचपन के साथी थे और साथ ही अपने कॉलेज की पढ़ाई करने दिल्ली आये थे | दोनों की नौकरी यही दिल्ली में लग गयी थी और कॉलेज से चल रही उनकी दोस्ती अब घनिष्ठ मित्रता में बदल चुकी थी | दोनों ही एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह से समझते थे | कई सारी चीज़ो में उनके काफी अलग विचार थे, लेकिन समय के साथ इतनी परिपक्वता आ गयी थी उन्हें की मित्रता की घनिष्ठता विचारधारा से नहीं पर एक दूसरे को सम्मान देने से बनती हैं, एक दूसरे को समझने से बढ़ती है, समय आने पर एक दूसरे के लिए एक स्तम्भ बन कर मौजूद रहने से बनती है | श्याम सुन्दर की मुलाकात परेश ने ही प्रबल विज्ञान से कराई थी | परेश उन दिनों मानसिक रूप से काफी बुरे समय से गुज़र रहा था और प्रबल विज्ञान के क्लिनिक में थेरेपी के लिए जाया करता था | वही से उनकी मित्रता हुई और फिर तीनों ही हर हफ्ते जॉली रोजर्स में अपनी साप्ताहिकी करने लगे | सारे हफ्ते का लेख जोखा वो वही “काउच” पर बैठे एक दूसरे के समक्ष रख डालते थे और भरपूर मात्रा में सभी चीज़ों पर आपस में बहस छेड़ देते थे | बहुत सारी बातों में नया पहलू उभर कर आता था और मन को शान्ति भी मिलती थी निःसंकोच दिल का हाल एक दूसरे के सामने खोल कर रखने मे |

श्याम को इस बार जॉली रोजर्स के लिए एक अच्छा विषय मिल चुका था | अप्सरा बार मे बैठे वह सोचने लगा कि ये चैटिंग – वेटिंग उसके बस की बात नहीं है | यहाँ में कम से कम एक अच्छा माहौल तो मिलता है | काल्पनिक डिजिटल दुनिया के बजाय हड्डी और माँस की बनी प्रतिमाएं तो देखने को मिलती है | श्याम अपनी सोच में ही मग्न था कि पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा |  

“और ड्यूड भाई क्या मौज चल रही है ?” श्याम ने अपनी दाई गाल पर हथेली रखते हुए बड़े ही संयम के साथ मुड़ कर देखा | मिस्टर ब्रैंडन उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख रहे थे | रेशम से बनी काली शर्ट और काली पैंट पहने मिस्टर ब्रैंडन | हाथ में ब्लैक लेबल व्हिस्की की गिलास थामे मिस्टर ब्रैंडन | 

“श्याम तुम कब तक – आखिर कब तक यही बैठ कर लिखते रहोगे | तुम्हारे हाथ कब थकेंगे और कब रुकेंगे ?” नशे में धुत्त मिस्टर ब्रैंडन ने अपने हाथों को हवा में उछाल कर जोर से बार टेबल पर जोर से एक मुक्के को दर्ज करते हुए यह सवाल पूछा | 

अपनी मदहोशी भरी मुस्कराहट से उन्हें देखते हुए श्याम मन ही मन सोचने लगा – “अबे बूढ़े, तेरी तरह मेरा एक पैर कब्र पर नहीं है जो किसी भी लड़की को देख कर अपनी बाहों में भर लू |”

“मिस्टर ब्रैंडन, अभी तो मैं जवान हूँ और अपना अलग स्टाइल है” –  व्हिस्की की एक प्यारी सी घूँट लेते हुए उसने कहा |

“मिस्टर ब्रैंडन वो राहगीर ही क्या जो थक कर गिर गया, विश्राम तो पड़ाव पहुँच कर ही होगा, तलाश जारी है, ये हाथ मेरे रुकेंगे तब, मेरी स्वप्नपरि मेरी बाहों में आएँगी जब |”

“वाह वाह क्या खूब कहा तुमने भी श्याम सुन्दर – बहुत खूब” – मिस्टर ब्रैंडन ने नशे में झूमते हुए कहा | 

श्याम ने फिर मुस्कुराते हुए मिस्टर ब्रैंडन की आँखों में झाँक कर कहा,

“हम यहाँ दिल बहलाने नहीं 

दिल लुटाने आते हैं

प्यार पाने नहीं

प्यार बांटने आते हैं |”

“दिल ही बहलाना होता तो शायद आपके लिए कुछ भी नहीं बचता मिस्टर ब्रैंडन |” श्याम ने अपना हाथ मिस्टर ब्रैंडन की तरफ बढ़ाया और फिर दोनों एक दूसरे को अपनी तरफ खींच कर जोर जोर से हँसने लगे | 

मिस्टर ब्रैंडन उर्फ़ बृंदावन मिश्रा एक ६५ वर्षीय महात्मा थे | और यह सच है की वो वाकई में एक महात्मा “थे” | अभी भी एक महान आत्मा ही है लेकिन जरा दूसरे किस्म के | बहुत ही उच्च कोटि के ब्राह्मण परिवार से थे | बचपन से ही भगवत गीता, वेद और पुराण उन्हें कंठस्त कराया जाता रहा था | किताबो के माध्यम से, कीर्तन से, पूजा और साधना से उनके घर में दिन और रात भगवान् का ही नाम जपा जाता था | कॉलेज जाने के पहले उनका उठना बैठना केवल धार्मिक लोगो के हे बीच में होता था | पिता जी पंडित थे और शाम से ही घर के बरामदे में जमघट लग जाता था और चाय और सत्संग का कभी न ख़त्म होने वाला सिलसिला शुरू हो जाता था | इतना दबाव था उनपर एक ब्राह्मण होने का और धार्मिकता का कि वो कुछ कर भी नहीं पाते थे, बस घर आये अत्यंत धार्मिक लोगो के बीच घूमते रहते थे, और उनके लिए पान और तम्बाकू लगाते रहते थे | जब कॉलेज की पढ़ाई करने घर से पहली बार दिल्ली के लिए निकले तो पिताजी ने चार तस्वीरें भेंट की | पहली माँ दुर्गा की ताकि उनकी कृपा उनके सुपुत्र पर बनी रहे, दूसरी भगवान कृष्णा की, तीसरी महावीर भगवान की और चौथी परम-गुरु रामकृष्ण परमहंस की | अपने होस्टल के कमरे में घुसते ही मिस्टर ब्रैंडन ने तस्वीरों को टांगने की तैयारी की | पहली बिंदु की, दूसरी हेलेन की और तीसरी पद्मा खन्ना की | पिताजी के आशीर्वाद को तो बक्से में ही लीला दिखाने के लिए बंद कर दिया गया था | दरियागंज से ये तस्वीरे लायी गयी थी ताकि मिस्टर ब्रैंडन बिना किसी रोक टोक के इन्हें निहार सके | आजतक अपनी कल्पना का ही इस्तेमाल करते आये थे, अब आँखों का किया जाएगा | 

मिस्टर ब्रैंडन ने श्याम से कहा – “श्याम अब अप्सरा बार बहुत हुआ, चलो मैं तुम्हें ऐसी जगह ले चलता हूँ जो बस ये समझ लो की प्यार का एक मंदिर है और वह का माहौल देख कर तुम भक्ति में विलीन हो जाओगे | एक ऐसी मधुशाला जहाँ तुम हालावाद से भी उच्च स्तरीय पता नहीं किन-किन प्रकार की कविताओं की रचना कर डालोगे |”

श्याम को कुछ समझ में नहीं आया | उसे यकीन न था की ऐसी कोई जगह दिल्ली में हो सकती है | श्याम जानता था की उसे अपनी तलाश जारी रखनी है और अगर ऐसी जगह सच में है तो उसे वहां ज़रूर जाना चाहिए | अप्सरा बार उसके लिए थोड़ी मायूसी का कारण बनता जा रहा था | अक्सर वाही चेहरे देखने को मिलते थे | एक नयी जगह शायद कोई आशा की किरण लेकर आये | शायद किस्मत उस नए जगह पर ही चमके | श्याम ने मिस्टर ब्रैंडन से कि अब उनकी अगली मुलाक़ात लैला बार में ही होगी | 

इसके साथ ही श्याम ने अपने कलम को शर्ट के ऊपरी पॉकेट में डाला, कागज़ को अपनी जेब में रखा, रहीसाना अंदाज़ में बिल और बख्शीश दोनों ही टेबल पर रखे और वापिस घर जाने के लिए निकल पड़ा | एक बार अप्सरा बार की तरफ उसने मुड़ कर देखा | शायद अप्सरा बार का सिलसिला अब ख़त्म होने को है |

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