१ – निशा और परेश

परेश – बहुत बार आती थी तुम 

          मेरे ख्यालों में 

          अब वहीं रहती हो 

          कभी बाहर निकलो

          तो मिलना ज़रूर

          कब तक रहोगी पड़ीं

          मेरे ख्यालों में | 

निशा – आज रहने दो मुझे वहीं

           अपने कमरे में बंद 

           मैं लाऊँगी अपने संग एक तूफान 

           जो उमड़ती है मुझमे भी और तुममे भी

           टूट न जाए वो बाँध

           आज रहने दो मुझे वहीं

           अपने कमरे में बंद |

परेश ने एक शीतल आह भरी | आज फिर बातों बातों में निशा ने बात काँट डाली | आज फिर निशा से उसकी मिलने की चाह एक चाहत बनकर ही दम तोड़ गयी |

परेश सोचने लगा की पता नहीं कब वो दिन आएगा जब वो निशा को प्रत्यक्ष रूप से सामने देख पायेगा | कब वो उसकी हथेलियों को अपनी हथेलियों में संजोग कर, अपने गालो से लगा कर रखेगा | कब उसी स्वप्नोवस्था में उसकी आँखों में आँखे डाल अपने प्यार का निशब्द इज़हार कर पायेगा | उसने निशा को केवल टीवी पर ही देखा था | पता नहीं कुदरत का क्या करिश्मा था कि जिस निशा को सारे देश के युवक पाने की काँमना रखते थे और उसके पीछे पागलो को तरह दीवाने थे, उस निशा की मुलाक़ात परेश से फेसबुक मैसेंजर पर हुई और वो निशा सारे देश के काबिल उम्मीदवारों को छोड़ परेश की दीवानी हो गयी | परेश अपने आप को बहुत की किस्मत वाला समझता था | पर निशा से मिलने के लिए उसे अभी थोड़ा इंतज़ार करने की ज़रुरत थी | उस अधबुद्ध मिलन की बेला के आने तक उसे अपने ख्यालों में ही निशा के साथ रहना पड़ेगा  | 

लेकिन फेसबुक मैसेंजर पे चैट करने की भी एक अजीब सी कशिश थी | वो रात को ऑफ़िस से थक के चूर होने के बाद भी घर की तरफ चहकते हुए, लपकते हुआ जाना और घर पहुँचते ही लैपटॉप खोल कर बैठ जाना | मैसेज टाइप करते समय मन ही मन मुस्कुराना, कमरे में लटके पंखे की तरफ देखना, फिर कुछ सोचना और मुस्कुराना, और बातचीत का सिलसिला जल्द खत्म न हो, इसके लिए फिर से एक प्यार सा मैसेज टाइप करना | वो निशा को घड़ी घड़ी चिढ़ाना, उसका कभी मायूस हो उठना और फिर वापस से उसी मासूम प्यार की छत के नीचे, परेश के साथ आ खड़े होना | एक मजेदार रिश्ता था ये जो परेश को दिन भर की थकान से तरो ताज़ा कर देता था | निशा एक मशहूर टीवी एक्ट्रेस थी और उसके साथ एक लॉन्ग डिस्टेन्स ऑनलाइन रिश्ता कायम करना, वो भी मुम्बई से दूर दिल्ली में बैठ कर, परेश जैसे साधारण युवक के लिए कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी | चाहने वालो की भीड़ में जिसमे परेश शायद काफी पीछे था, निशा ने उसे ही चुना|  ऐसा सोच कर परेश के मन में गुदगुदी हो उठती थी | 

परेश के पास अभी कोई दूसरा रास्ता था भी नहीं | निशा की सोच कुछ और ही थी | अभी ऑनलाइन ही चैट करने में ही बहुत आनंद था | पहली बार एक दूसरे से मिलना, आमने सामने देखना, कोई आम बात थोड़े ही न थी | निशा चाहती थी की जब वो परेश से मिले तो कुछ विशेष सा माहौल हो | जैसे की कोई जलसा हो रहा हो | जो कल्पना उसने पहली मुलाक़ात की कर रखी थी, शायद से हिंदुस्तान में होना मुमकिन था भी नहीं | उसके काल्पनिक लेंस में जो स्क्रीनप्ले चल रहा था, उसकी शूटिंग तो केवल यूरोप में ही हो सकती थी | और फिर यूरोप में वो परेश के साथ निसंकोच घूम फिर भी सकती था | शायद ही कोई पहचान पाता उसे वहाँ | निशा ने परेश से इस बात का ज़िक्र किया था – “पेरिस में मिलेंगे, एक आशिकाना और मदहोश कर देने वाले माहौल में |” 

परेश की एक छोटी सी नौकरी थी और पेरिस एक बहुत बड़ा सपना | निशा टीवी एक्ट्रेस थी और उसके लिए ये एक आम बात | वो पूरे पैसे खर्च करने को तैयार थी | और परेश में भी थोड़ा संकोच तो था इस बात को लेकर, पर उसने सोच रखा था की वास्तव में अगर ऐसी नौबत आन पड़ी तो वो निश्चित रूप से धीरे धीरे पैसे वापिस कर देगा | पर अभी तक ये बात बातों बातों में ही थी | कभी फ्रांस से इटली और कभी इटली से ऑस्ट्रिया के बीच ही घूमती रहती थी | 

परेश ने फिर एक गहरी सांस ली और कमरे की खिड़की की तरफ देखने लगा | खिड़की पर एक चादर परदे की तरह लटका पड़ा था | क्या करता बेचारा – तीन साल होने को आये थे और वो वही लटका पड़ा था | परेश ने कभी उसकी कोई खोज खबर ही नहीं ली थी | खिड़की की तरफ शून्य स्तिथि में ताक़तें हुए वो सोचने लगा की चाहे जो हो जाए, इस इतवार को वो एक नया पर्दा लाएगा ताकि उस बेचारे भागलपुरी चादर को मोक्ष प्राप्त हो | बहुत लोगो के लिए ये एक आसान बात होगी, खिड़की के परदे को बदलना | बहुत लोग ऐसा हफ्ते दर हफ्ते या महीने दर महीने करते होंगे | लेकिन अधिकाँश युवक जो एक गृहस्त जीवन से दूर ब्रह्मचर्य आश्रम में अकेले जीवन गुजार रहे होते है, अकेले रहते है और साथ में नौकरी भी कर रहे होते है, उनके लिए ये एक आसान काम नहीं होता है | नाप लेना, पर्दे का कपड़ा लेना, दर्ज़ी को देना और खिड़की के पेलमेट के बारे में तो किसी ने जिक्र ही नहीं किया – वो तो पिछले दो साल से रसोई में रखी हुई थी, उसे भी तो मरम्मत करना पड़ेगा? परेश को अपने गैर जिम्मेदाराना साहस या यू कहिये दुस्साहस पर हँसी आ गयी | भ्रम टूटते ही नजर लैपटॉप के स्क्रीन पर पड़ी तो देखा की निशा तीन बार बज़्ज़ कर चुकी थी |

परेश: ठीक है फिर 

         मैं करूँगा तुम्हारा इंतज़ार

         वैसे कैसा चल रहा है आपका

         एक्टिंग का कारोबार ?

निशा: कहा खो गए थे ?

         अब जाकर आये है आप 

         तीन बज़्ज़ के पश्चात ?

         एक्टिंग का कारोबार 

         बहुत झोलझाल है मेरे यार

         निर्माता से मिलो तो काम नहीं 

         बस मुझे ही देखे हर बार

         बहुत झोलझाल है मेरे यार 

निशा टेलीविज़न के एक प्रसिद्घ धारावाहिक में अभिनेत्री थी | वो सीरियल “निशा का सवेरा” पिछले तीन साल से चल रहा था और भारतवर्ष की महिलाएँ अपनी रसोई का काम सीरियल शुरू होने से पहले ही निपटा लेती थी | भारतवर्ष के पतिगण भी इस सीरियल से काफी खुश थे | निशा का सौंदर्य उनके जीवन में एक बहार जैसे था |  सीरियल कितना भी प्रसिद्ध क्यों न हो, निशा को और अच्छा काम मिलने में थोड़ी परेशानी हो रही थी | काफी हाथ पैर मार रही थी वो, पर कुछ ख़ास हाथ नहीं लग रहा था | वैसे भी टेलीविज़न सिरियल्स करते करते उसका मन ऊब सा गया था |

परेश: फोटोग्राफ्स अच्छे आये है 

         वैसी ही मासूम लग रही हो 

         जैसी सचमुच में हो 

         पर थोड़ी और अदा बिखेरनी चाहिए तुम्हें 

         आँखे थोड़ी और नशीली

         होंठ थोड़े और रसीले  

         निर्माता को लगे की बस पी ले 

         तब जाकर समझो की तुम्हें काम मिले 

निशा: क्या कहते हो 

         मर्द होते ही है ऐसे 

         सारे कमीने 

परेश तो मजे लेने में था ही उस्ताद | बड़ा मजा आता था उसे निशा से इस विषय में चटखारे लेकर चिढ़ाने मे | उंगलिया अब जवाब दे रही थी और आँखे नींद से नशीली हो चुकी थी | सोचा चलो दस मिनट और चैट कर लिया जाए | निशा की भी कल शूटिंग थी और परेश को भी कुछ काम के विषय में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने थे | सरकारी बिल रिलीज़ कराना कोई आसान काम तो होता नहीं है | पर क्या करे, ये बिल रिलीज़ हो तो उस उसकी तंख्वाह मिले |

आज ही अपनी कंपनी के मालिक से उसकी दो टूँक बात हुई थी | कंपनी के मालिक का नाम था दिलीप कुकरेजा और ऑफ़िस के सारे कर्मचारी उन्हें बाबाजी के नाम से संबोधित करते थे  | अगर दुनिया में सिद्ध बाबा हुए है तो ढोंगी बाबा भी पैदा लेते ही रहते है | ये दूसरी श्रेणी के है थे | कुल ५५ वर्ष से ये धरती इनका बोझ ढो रही थी | परेश और परेशानी तो मेले में बिछड़े भाइयों की तरह थे | परेश की नौकरी लगने के बाद दोनों का फिर से मिलान हुआ था | दो महीने से तंख्वाह नहीं मिली थी तो परेश ने सोचा की आज बाबा जी की छुट्टी कर देगा | 

“कुकरेजा साब, आप क्या सोचते है – क्या मेरी मेहनत में आपको कोई कमी नजर आती है ?”

“नहीं परेश |” कुकरेजा साब ने चाय की प्याली से अपनी मूँछे गीली करती हुए ये बात कही | 

“क्या आपको ऐसा लगता है कि मैं अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं कर रहा हूँ ?

कुकरेजा साब ने अपनी एक आँख बंद की, माथे की लकीरो को दबाव दिया और वो तुरंत हरकत पे आ गए, गहरे चिंतन की अवस्था में आकर, छत की ओर देखते हुए उन्होंने कहा – “नहीं, मैंने तो कभी ऐसा नहीं कहा, बल्कि तुम तो हमारी कंपनी का एक स्तम्भ हो |”

परेश ने हामी भरी |

“तो फिर ये सवाल क्यों परेश?” कुकरेजा साब ने पूछा | 

“वो क्या है कुकरेजा साब कि दो महीने होने को आये और तंख्वाह नहीं मिली है अब तक, तो मैंने सोचा कि शायद आप मेरे काम से खुश नहीं है | शायद मुझसे ही कोई गलती हो गयी हो |”

“देखो”, कुकरेजा साब ने परेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा | “अगर मेरा बस चले तो हर महीने की पहली तारीख को ही सबको तंख्वाह मिल जाए | और अगले महीने से ही हम ये लागू करने जा रहे है |”

परेश भौचक्का रह गया | उसके बात छेड़ने का इतनी जल्दी ऐसा असर | अभी उसने कहा ही था और बाबाजी तुरंत मे उसकी बात मान भी गए ?

बाबा जी ने एक किंकर्तव्यविमूढ़ मुस्कराहट दी और बोले, “ताकि हमारी ये कोशिश कामयाब हो, कंपनी के सीनियर एम्प्लॉयीज की, यानी तुम्हारी ज़िम्मेदारी बढ़ती है |” परेश सन्देहपूर्वक बाबा जी को देखने लगा, ऐसे ही वो इतने बड़े बिजनेसमैन तो नहीं हुए थे | 

“अब देखो परेश, हमारे सरकारी प्रोजेक्ट्स का पेमेंट समय पर आ जाए तो तंख्वाह भी सभी लोगो को पहली तारीख को मिल जाए | तो थोड़ी और मेहनत करो, इनवॉइस टाइम पर पास करा कर पेमेंट लेकर आओ और तंख्वाह बेशक महीने की पहली तारीख को लेकर जाओ |”

“या फिर ऐसा करते है – बहुत साड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में ऐसा होता है – लेट अस ट्राई टू रिलीज़ द पे रॉल बाई द लास्ट थर्सडे ऑफ़ द मंथ | ये अच्छा रहेगा | तो चलो अब काम पर जुट जाओ, वो फ़र्टिलाइज़र विभाग में हमने जो सॉफ्टवेयर लगाया था, उसका पेमेंट जल्दी पास करवा कर लाओ | समझ गए ?”

परेश ने एक गहरी साँस बाहर की तरफ छोड़ी और मन ही मन सोचने लगा | 

“बहुत चला था न हीरो बनने, अब हाथ में लेकर घूमो अपनी बेवकूफी का सर्टिफिकेट |” 

बाबा जी से इस मामले में आगे निकलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था | दूसरी श्रेनी के बाबा जी थे ये और दूसरों का खून चूस कर ही अपने जीवन के रसायन में इज़ाफा करते थे | 

खैर, परेश को बात समझ में आ गयी थी | उसे कल से फ़र्टिलाइज़र डिपार्टमेंट के ऑफ़िस के चक्कर काटने पड़ेंगे, अगर तंख्वाह पानी है तो | 

इधर रात बहुत हो चुकी थी | परेश ने अपनी उंगलियों की तरफ देखा, टाइप करते करते गहरा डेंट पड़ चुका था | आँखे नींद के अभाव में लाल हो चुकी थी | शरीर जो इशारा कर रहा था, उसे प्यार का प्यासा दिल नजरअंदाज कर रहा था | परेश ने अपनी लैपटॉप की तरफ देखा, फेसबुक मैसेंजर पर निशा का नाम दर्ज था, रौशन था | दूर मुम्बई में, अपने लैपटॉप या फ़ोन के तरफ देखती हुई निशा की वो कल्पना करने लगा | घुंगराले बाल, मस्त मदहोश कर देने वाली आँखे, और उसके भरे भरे स्तन, जो उसे अपनी ओर पुकारते थे | परेश बस पागल सा हो गया | उसे पता था की अब वो निशा से मिले बगैर नहीं रह सकता था | निशा के गदराए जिस्म में सबसे ज्यादा पसंद थी उसे उसकी जाँघे – वो कहते है न अंग्रेजी में – “थंडर थाईज़” | निशा के पीछे ऐसे ही भारतवर्ष के मर्द दीवाने नहीं थे | उसके इस गदराए बदन ने तो कुछ और भी कहर ढा दिया था | ऐसा कहर जिसके पीछे परेश के एक मनोचिकित्सक मित्र ने तो संशोधन के नाम पे एक जंग छेड़ रखी थी | देश के समलैंगिक पुरुषों में भी निशा को लेकर हेट्रोसेक्सुअल ख्यालात आने लगे थे | प्रबल विज्ञान, परेश के मित्र, इस अजीबोगरीब पद्विती को समझने में लगे हुए थे | 

परेश ने अपने लैपटॉप की तरफ फिर से देखा | उसकी आँखे अब पूरी तरह से नींद के वश में आ चुकी थी | स्क्रीन पर निशा फिर से तीन बार बज़्ज़ कर चुकी थी | 

परेश: मैं तुम्हें देख रहा था 

         अपने ख्यालों में 

         वही जहा कि तुम रहती हो 

         दिनों में और रातों में 

         मैं कौन हूँ ?

         तुम्हारा रैन बसेरा हूँ 

         सोचता हूँ की यही खो जाऊँ

         तुम इजाज़त दो अगर 

         तो शरीर थक चुका है 

         तुम्हारा ख्याल करते हुए 

         क्या मैं सो जाऊँ ?

निशा: हाँ रात तो अब निकल ही चुकी है 

          सवेरा आने को है 

          पर चिंता मत करना 

          आँखे बंद करना 

          और चैन की नींद सो जाना 

          निशा तुम्हारे साथ है |

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